जानती हूँ
फिर भी
जी चाहता है
तुम्हारे वक़्त से
मैं कुछ लम्हे चुरा लूं
तो कैसा हो
तुम मुस्कुराते कम हो
तुम्हारे हसीं लबों से
कुछ मुस्काने चुरा लूं
तो कैसा हो
तुम्हारी नज़र में
हर वक़्त कोई रहता है
मैं भी कुछ नज़रे चुरा लूं
तो कैसा हो
तुम सोते बहुत हो
तुम्हारी उनींदी आँखों से
मैं कुछ नीदें चुरा लूं
तो कैसा हो
यूं तुम बेवजह
रूठते बहुत हो
मै तुम्हारा रूठना चुरा लूं
तो कैसा हो
तुम प्यारे बहुत हो
तुम्हारा कुछ प्यार
मैं भी चुरा लूं
तो कैसा हो
तुम सोचते बहुत हो
तुम सोचते बहुत हो
तुम्हारे कुछ ख्याल
मैं भी चुरा लूं
तो कैसा ही
तुम बोलते बहुत हो
तुम्हारे बोले हुए
चंद अल्फाज़ मैं भी चुरा लूं
तो कैसा हो
१५/९/२०११
मधु अरोरा
1 comment:
Hey....Apne bahut khubsurat likha hai...mujhe laga jaise ki mere dil ki khwahishon ko apne apne pen se paper pr likh diya ho..pakki bat hai ki aap kisi se bahut pyar karti hai isliye hi ap itni feelings se bhara kuch likh pae hai...
Post a Comment