कृपया अपने बहुमूल्य विचार अवश्य व्यक्त करें
Wednesday, December 17, 2008
सपना
हर
पल
लगे
तू
अपना
हर
रात
से
सुबह
तक
ख्वाबों
का
बुनु
सपना
पर
कैसे
कहूँ
तुझे
अपना
जब
खो
जाए
कहीं
तू
बन
के
एक
सपना
ख्वाबों
से
हकीकत
तक
हम
हों
बस
तन्हा
तन्हा
२१
/
१०
/
२००८
जिंदगी की किताब
खुली
रखी
है
ज़िन्दगी
की
किताब
मैंने
जो
चाहो
आप
लिख
दो
सुनती
ही
आई
हूँ
आज
तक
जो
चाहो
तुम
भी
कह
दो
हमेशा
ही
रहूंगी
तुम्हारी
जब
चाहो
रखो
या
ठुकरा
दो
धधक
रहे
हैं
शोले
बुझा
दो
या
हवा
कर
दो
क्या
खरीदने
निकली
थी
याद
नही
पर
आज
तक
बिकती
ही
आई
हूँ
१
/
१२
/
२००८
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