कृपया अपने बहुमूल्य विचार अवश्य व्यक्त करें
जी चाहता है
खो जाऊँ
इन्ही अंधेरों में
जिनसे निकली थी मैं
रौशनी की
तस्वीर बनकर
गम जाऊँ
गुमनामी के
आवारा बादलों के संग
लिपट जाऊँ
अंधेरों की
हमनशीं बनकर
भूल जाऊँ
उजालों को
उजड़ी जागीर समझकर
कोई रात
न सवेरा हो
कोई मंजिल
न चेहरा हो
न घर
न डेरा हो
न धुप न चाँदनी हो
एक गुमनामी का
तपता रेगिस्तान
और सिर्फ़ मैं
मेरे लिए
२७/२/२००८