Tuesday, August 12, 2008

जिनके लिए


जिनके लिए हम

शहरों भटके

जिनके लिए हमने

गलियां छानी
जिनके लिए हमने

मीलों ऑंखें बिछायीं

जिनके लिए हम

हर पल तडपे

जिनके लिए हम

रातों जागे
वो आए

और आकर कह गए

कल बात करेंगे

३१/०८/०६

चाँद




ठहरा है चाँद


जवान रात के


सीने पर


आओ कुछ देर


बैठ जायें


जीने पर


कुछ मुस्कुराएँ


कुछ गुनगुनाएं


फिर अपने घर जा


सो जायें


चाँद सिखाता है


यही महीने भर
आओ बैठ जायें


जीने पर


२८/०९/०७