नया साल बदलने से अगर
और भी कुछ बदल जाता
तारीखें बदलने से अगर
इन्सान बदल जाता
बद्ल जाता वो सब कुछ
जो मानवता के लिए ठीक नहीं है
वो मानव हीनता बदल जाती
वो इन्सान बदल जाता
वो ह्रदय बदल जाता
वो इन्सान बदल जाता
वो नफरत बदल जाती
वो हृदयों की दूरियां
कम हो जाती
वो रिश्ते बदल जाते
जो निभाने मुश्किल हैं
वो संवेदनाएं बदल जाती
वो प्रण बदल जाता
बदल जाती सत्ता देश की
तो प्रगति बदल जाती
तो समझते नया साल ही नहीं
बहुत कुछ बदल गया
सिर्फ तारीखें बदलने से
कुछ नहीं बदल जाता
वो ही है सूरज
और वो ही है दिन
वो ही संवेदनहीन इंसान
वो ही टूटे रिश्तों का बोझ
वो ही दुःख
वो ही समस्याएँ
निरर्थक पीने नाचने से
दुःख नहीं बदल जाता
सिर्फ बधाई देने से
मन नहीं बदल जाता
सिर्फ नया साल आने से
कुछ नहीं बदल जाता
१/१/२०१२
मधु अरोरा