Wednesday, October 8, 2014

काश.......


















काश.......

ऐ काश कोई ऐसी ताबीर हो जाये 
तुझे सोचूं और तुझे खबर हो जाये 

जब भी खोलूं मैं आँखें मेरी 
तू सामने नज़र आये 

मैं मुस्कुराऊ
तो तू मेरे साथ खिलखिलाए 

मैं गुनगुनाऊँ 
तो तू मेरे साथ में गाये 

मैं रोऊँ तो तेरे हाथ 
मेरे आंसू पोंछें 

नींद में जब भी बोझल हों आँखें 
सोने को तेरा कांधा मिल जाये 

कभी जो चाहे तू छोड़ के जाना 
उस से पहले मुझे मौत आ जाये 

© मधु अरोरा
७/१०/१४

Sunday, May 11, 2014

माँ



माँ 

किसी की काली होती है
किसी की गोरी होती है 
किसी की लम्बी
किसी की छोटी होती है
किसी की मोटी 
किसी की पतली होती है
माँ कभी कठोर 
कभी विनम्र होती है 
सबकी माँ 
कुछ अलग होती है
दरख्त कैसा भी हो
कुछ तो उसकी छाँव होती है
माँ कैसी भी हो
माँ सिर्फ माँ होती है 

© मधु अरोरा 
३०/४/ २०१४