हर पल लगे
तू अपना
हर रात से
सुबह तक
ख्वाबों का बुनु
सपना
पर कैसे कहूँ
तुझे अपना
जब खो जाए
कहीं तू
बन के एक सपना
ख्वाबों से
हकीकत तक
हम हों बस
तन्हा तन्हा २१/१०/२००८
खुली रखी है ज़िन्दगी की किताब मैंने
जो चाहो आप लिख दो
सुनती ही आई हूँ आज तक
जो चाहो तुम भी कह दो
हमेशा ही रहूंगी तुम्हारी
जब चाहो रखो या ठुकरा दो
धधक रहे हैं शोले
बुझा दो या हवा कर दो
क्या खरीदने निकली थी याद नही
पर आज तक बिकती ही आई हूँ
१/१२/२००८