जिंदगी की किताब
खुली रखी है ज़िन्दगी की किताब मैंने
जो चाहो आप लिख दो
सुनती ही आई हूँ आज तक
जो चाहो तुम भी कह दो
हमेशा ही रहूंगी तुम्हारी
जब चाहो रखो या ठुकरा दो
धधक रहे हैं शोले
बुझा दो या हवा कर दो
क्या खरीदने निकली थी याद नही
पर आज तक बिकती ही आई हूँ
१/१२/२००८
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