कृपया अपने बहुमूल्य विचार अवश्य व्यक्त करें
Wednesday, December 17, 2008
जिंदगी की किताब
खुली
रखी
है
ज़िन्दगी
की
किताब
मैंने
जो
चाहो
आप
लिख
दो
सुनती
ही
आई
हूँ
आज
तक
जो
चाहो
तुम
भी
कह
दो
हमेशा
ही
रहूंगी
तुम्हारी
जब
चाहो
रखो
या
ठुकरा
दो
धधक
रहे
हैं
शोले
बुझा
दो
या
हवा
कर
दो
क्या
खरीदने
निकली
थी
याद
नही
पर
आज
तक
बिकती
ही
आई
हूँ
१
/
१२
/
२००८
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