चाहत की इन्तहा..की कहीं न कहीं किसी भी रूप में हम अपनी चाहत को संजोये रखें अपने अंतर्मन में. जैसे किसी को किसी से चाहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, ठीक वैसे ही किसी को भुलाने के लिए भी मजबूर नहीं किया जा सकता. चाहत एक जज्बा हैं..शायद मौत भी उसे छीन नहीं सकती...
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चाहत की इन्तहा..की कहीं न कहीं किसी भी रूप में हम अपनी चाहत को संजोये रखें अपने अंतर्मन में. जैसे किसी को किसी से चाहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, ठीक वैसे ही किसी को भुलाने के लिए भी मजबूर नहीं किया जा सकता. चाहत एक जज्बा हैं..शायद मौत भी उसे छीन नहीं सकती...
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