Sunday, July 15, 2007

अपनी ख़ुशी के लिए




कहीँ मिलता है सूरज
उमर भर के लिए


किसी को मयस्सर नही
किरण भी जिन्दगी के लिए
कोई हँसता है तो
निकल आते हैं आंसू
किसी के पास सिर्फ आंसू
उम्र भर के लिए
लगता नही किसी का दिल
अकेले में
किसी के नसीब में है
सिर्फ अकेलापन
हर घड़ी के लिए
कोई सजाता है महफ़िलें
अपनी ख़ुशी के लिए
कोई बचता है महफिलों से
अपनी ख़ुशी के लिए
२१/६/२००७

2 comments:

राकेश said...

कोई बचता हैं महफिलों से अपनी खुशियों के लिए,... भीड़ में भी इंसा कभी कभी अकेला ही होता हैं, गुम...सिर्फ अपने आपमें, अपनी...लेकिन खामोशी का भी तो एक संगीत होता हैं, जो गूंजता रहता हैं..बस...अपने अंत के इन्तेज़ार में.

Anil said...

कोई सजाता है महफ़िलें
अपनी ख़ुशी के लिए
कोई बचता है महफिलों से
अपनी ख़ुशी के लिए


mind blowing.......