तू नही
तो क्या हूँ मैं
एक ढलता सा दिन
एक अँधेरा हूँ मैं
एक ज़रा
एक कतरा हूँ मैं
थम गया सा
एक लम्हा हूँ में
एक शून्य
एक हाशिया हूँ में
अंत में लगा
एक प्रश्नचिन्ह हूँ मैं
१०/३/२००८
तो क्या हूँ मैं
एक ढलता सा दिन
एक अँधेरा हूँ मैं
एक ज़रा
एक कतरा हूँ मैं
थम गया सा
एक लम्हा हूँ में
एक शून्य
एक हाशिया हूँ में
अंत में लगा
एक प्रश्नचिन्ह हूँ मैं
१०/३/२००८
3 comments:
सुन्दर प्रस्तुति
थम गया सा
एक लम्हा हूँ में
kaash aisa ho paata. sunder bhaav hein...
जितनी हैं खूबसूरत आपकी रचनाएं
उससे जादा दिए जा रहा हूँ शुभकामनायें.
मगर फिर भी येसा लग रहा है "सागर"
रोज़-रोज़ हैं उनके लिए लाखों दुआएं
खुश रहें, हंसती रहें ताउम्र उनकी फिजायें.
---
आप बहुत ही अच्छा लिख रही हैं. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
---
उल्टा तीर
Post a Comment