Sunday, May 13, 2007

कोई मरा है कल यहाँ


सो गयी है ज़मीन
पथरा गया है देवता
सिसक रहे हैं ज़ख्म
मर गयी है आत्मा
धड़कने खोयी सी हैं
ऑंखें रोई सी हैं
मद्धम सी हैं सांसें
जिंदा है अभी प्यार यहाँ
सुलग रहे हैं अरमान
लगता है मरा है कोई कल यहाँ
१३/३/२००७

1 comment:

संदीप सिंह said...

bahut umda likhate hai ,,likhte rahiye